Monday, May 5, 2008

First Love

बहुत दिनों बाद आज इस विषय पर सोचने का मौका मिला , ऐसा लगता है जैसे मस्तिष्क जड़ हो गया हो , भावातिरेक हाथों मे कम्पन ओर लेखनी अवरुद्ध हो गई हो । आज से लगभग पाँच साल पुरानी कहानी जिसमे भावना, नाटक, रोष ओर न जाने कितने ही रसों का समावेश है । वो रस जो हँसी के थे, वो रस जो एक दूसरे को दिखाए जाने वाले बनावटी गुस्से मे थे , वो रस जो सदैव रूठने -मनाने के नाट्य से झलकता था।

जीवन का एक पडाव था वो या फ़िर एक पडाव मे बसा हुआ सारा जीवन यह कहना मुश्किल हो रहा है।

कहते हैं प्रेम अँधा होता है जो उम्र , जाती, सम्प्रदाय और संस्कृति के बंधनों से सदैव उपर रहता है। ओर इसीलिए प्रेम का सामना प्रयोगिकता के धरातल से तब होता है जब यह कुलांचे भरता प्रेम सांसारिक बंधनों के थपेरे खा कर वास्तविकता के भूमि पर गिरता है । तब यह ज्ञात होता है की वास्तविकता कितनी कटु है , कितनी निर्दयी है जो दो निरीह प्राणी के उपर इतना अत्याचार करती है। वास्तविकता ही एक कारक है , जो विवश कर देती है हमें भविष्य , समाज, ओर इसके आधारहीन ढकोसलों को मानने के लिए । तदुपरांत प्रारंभ होता है ह्रदय विदारक वेदना ओर वास्तविकता के दंश को झेलने का क्रियाकलाप जो किसी के भी अन्दर सोये हुए लेखक , कवि , शायर को जगाने के लिए पर्याप्त है।

तेरी खतों का निशाँ मिटाया है,
क्या कहूं ख़ुद पे कैसा सितम धाय है,
दर्द के गुमनाम राहों से गुजर कर ,
हमने रस्म - ऐ - मुहब्बत निभाया है।

उन खतों को तुमने छुआ है,
साथ उनसे तुम्हारा रहा है,
तुम्हारे खुशबू मे वो भी नहाये होंगे,
कितने जज्बात से तुमने उन्हें लिखा है।

मुहब्बत के उन खूबसूरत गवाहों को,
हमने बेरहमी से जलाया है,
दर्द के गुमनाम राहों से गुजर कर,
हमने रस्म- ऐ- मुहब्बत निभाया है।

आज भी उन दिनों की बातें याद कर के अधरों पे स्वतः मुस्कराहट आ जाती है। ओर फ़िर यही सोचता हूँ की , lucky those people are who get true love in their lives, but luckiest are those who get it even for second time........

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