जब भी तुमको सोचा, ख़ुद के करीब पाया।
जैसे मेरे साथ-साथ चलता हो तेरा साया।
दिल को दिया सकून , तेरे साए ने,
जब भी इसको तन्हाई ने सताया।
तेरे साए मे भरी है वो बातें,
कराती है ताज़ी हमारी जो यादें,
की हम मिले थे उस मुकां पे जहाँ,
आकर थम सी गई थी हमारी सांसें,
वो साँसे आज भी थमती हैं,
तेरे यादों मे आँखें आज भी नमतीं हैं,
तेरा साया देता है तब दिल को राहत,
राहत पाकर भी बेचैनी कहाँ कमती है,
इस बेचैन दिल को हमने जब समझाया,
पर समझाने पर हर बार यही पाया,
नहीं इस दिल को था उकसाया किसी ने,
कोई ओर नहीं था वो था तेरा साया।
Wednesday, May 14, 2008
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