Wednesday, May 7, 2008

एक गंभीर मुद्दा

सोचा कुछ ओर भी लिखु , अब जब ब्लॉग बना ही लिया है तो अब इसके माध्यम से ही अपने अवांछित समय का सदुपयोग करूं । कुछ अन्य विद्वानों के ब्लॉग ने भी इस दिशा मे उत्प्रेरक का कार्य किया और मैंने फैसला कर ही लिया की कुच्छ गंभीर बातें अपने ब्लॉग पर लिखूंगा। लेकिन ये गंभीर बातें मैं लाऊँ कहा से ये बड़ा ही जटिल प्रशन खड़ा हो गया ।

काफ़ी देर सोच बिचार करने के बाद मैंने अपने मित्र से पूछा .... अगर वो मुझे कुछेक गंभीर मुद्दों पर बात करने का विषय दे, मित्र महोदय जो पेशे से पत्रकार हैं, अपने अंदाज़ मे मुझसे मेरी राय मांगने लगे, ओर उनके पास तो जैसे विषय वस्तु की कमी ही नही थी... देश की उल्टी राजनीति , तजा चल रहे DLF क्रिकेट मे खेल को छोर ब्यापार प्रबंधन की प्राथमिकता तो वहीं खेल के मैदान मे ग्लामर का प्रदर्शन नृत्य सुंदरियों के माध्यम से किए जाने की तर्कसंगतता। ये सब उनके लिए सबसे बड़े गंभीर मुद्दे थे , जिनके उपर मुझे अवश्य ही बात करनी चाहिए । और अगर फ़िर भी कुछ बचा पड़ा रह गया तो रही सही कसर हमारे महाबली " द ग्रेट खली " पूरी कर ही देंगे।

किंतु भगवान् की दया से नाही मेरी राजनीति मे कोई रूचि रही है और मैच फिक्सिंग जैसे दुखांत घटना के बाद क्रिकेट मुझे सज्जनों का खेल मालूम नही पड़ता । वैसे भी खेल के मैदान मे एक खिलाडी का दूसरे सह-खिलाडी को Monkey ( ...माँ की ) बोलना स्वयं ही इस बात का सत्यापन है की क्रिकेट अब भद्रजनों का खेल नही रहा । अतः ये चीजें मुझे बिल्कुल भी आकर्षित नहीं करतीं .... हाँ लेकिन उन नृत्य बालाओं के उत्तेजनापूर्ण उछल- कूद और अन्य शारीरिक गतिविधियाँ एक क्षण के लिए अवश्य लुभातीं हैं , और मन को उद्वेलित कर जातीं हैं। मुझे लगता है , खेल के मैदान मे इनकी उपस्थिति मात्र इसलिए दर्शाई जाती है की अगर खेल नीरस हो रहा हो तो भी दर्शकों का भरपूर मनोरंजन होता रहे और स्टेडियम से बाहर जाते हुए किसी भी दल के समर्थक को ऐसा न लगे नहीं उसके टिकेट के पैसे बेकार गए।

सचमुच ये कलयुग अब मात्र घोर कलयुग न रह कर , घोर कल + अर्थ युग बन गया है। सचमुच । अगर अखाडे मे खड़े होकर सारी शारीरिक यातना सहने को कोई तैयार हो जाता है , तो इसका कारण बस ये है की, इसके एवज मे लाखों डॉलर उसके जेब मे ठूंस दिए जाते हैं। और फ़िर हर न्यूज़ चैनल वाला अपने रात के प्राइम टाइम के शो मे बड़े ही गोरान्वित तरीके से इसके लिए महाबली का जय - जयकार करता है। उसके इतिहास, भूगोल, और सारे समाजशास्त्र को दर्शाता है। और देखने वाले लोग भी सिर्फ़ अपने बाल - बच्चो के साथ बैठ कर देखते ही नही हैं , बल्कि अगले दिन अपने ऑफिस , स्कूल मे भी इसकी चर्चा - परिचर्चा मे अपना बहुमूल्य समय नष्ट करते हैं।

अगर तिवारी जी ( मेरे पत्रकार मित्र) के दृष्टि मे यही गंभीर मुद्दा है तो , मैं फ़िर क्षमा मांगता हूँ। ये उनकी भी गलती नहीं है..... उनके पेशे की गलती है अथवा उनके खडूस बॉस की जो उन्हें हर किसी हरकत मे कोई ने न्यूज़ लाने को बोलता है। इनमे से एक राजनीति को छोर कर कोई मुद्दा मुझे तर्क सांगत नही लगा जिसके उपर टिपण्णी की जा सके । बाकी तो सारे बस सस्ते मनोरंजन के तरीके हैं।

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