Friday, May 2, 2008

गाली

सुनने मे काफ़ी बुरा लगता है ये शब्द। ओर अगर मेरी माने तो शायद कोई गाली इतनी बुरी लगती होगी सुनने मे , जितना ये शब्द अकेला बुरा लगता है। दरअसल गाली एक विशेषण है जोकि नकारात्मक भावना से प्रेरित होकर दिया जाता है अतः आप इसे एक उच्च कोटी के नकारात्मक विशेषण की भी संज्ञा दे सकते हैं। मूलतः गालियों का अगर वर्गीकरण किया जाए , तो इन्हे दो तरह के श्रेणी मे बाटा जा सकता है।
१) मानविक गालियाँ
२) पाश्वीक गालियाँ
पाश्वीक गालियों मे व्यक्ति विशेष की तुलना किसी पशु से की जाती है। जैसे - कुत्ता, गधा, सूअर , आदि। मानविक गालियाँ वो होतीं हैं , जिनमे मनुष्य की तुलना गिरे हुए स्तर के अन्य किसी मनुष्य से की जाती है। उदाहरणस्वरूप ; मूर्ख, कमीना, पापी इत्यादी इस श्रेणी की गालियाँ हैं...
मानविक गालियों को भी आगे दो भागों मे विभाजित किया जा सकता है।
क) वैचारिक गालियाँ
ख़) साम्बंधिक गालियाँ
वैचारिक गालियाँ किसी को उसके ओछे विचार के कारण दी जातीं हैं। जैसे नीच , पाखंडी , दुष्ट किंतु साम्बंधिक गालियाँ वो होतीं हैं जिनसे किसी के अवांछित सम्बन्ध की दुहाई दी जाती है अथवा कोई ऐसी गाली जिसमे पीड़ित के सगे - संबंधियों को भला बुरा कहा जाता है । अब यहाँ एक यक्ष प्रशन यह खड़ा होता है की , इनमे से सबसे निकृष्ट गाली कौन सी है? आमतौर पर हमें उपर्युक्त सभी तरह की गालियाँ को यदा-कदा , चलते-फिरते सुनने का अवसर प्राप्त हो ही जाता है। और ग़लत न होगा ये कहना के शायद गालियाँ आज के भाग - दौड़ भरी जीवनशैली मे हमारी भाषा का एक हिस्सा बन गयीं है। आज दोस्तों के बीच एक-दूसरे को मजाक- ठिठोली मे "साला " और अन्य साम्बंधिक गालियाँ देना एक आम सी बात हो गई है, जिन्हें बुरा नहीं माना जाता। लेकिन कभी कभी यह भी देखने को मिलता है की, कोई सामन्य पाश्वीक गाली भी बहुत बड़े फसाद का कारण बन जाती है। अतः यह निष्कर्ष सहजता से निकला जा सकता है की, वस्तुतः कोई गाली बुरी नहीं होती अपितु वो तरीका बुरा होता है, जिसमे गाली दी जाती है।

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