Wednesday, September 17, 2008

गत सप्ताहांत कुछ व्यक्तिगत कार्यवश पूना जाना हुआ। शीघ्र काम निपटा कर अगले दिन बंबई जाने नहीं तैयारी कर रहा था क्योंकि मेरी वापसी की फ्लाईट बंबई से ही थी कि मोबाइल कि घंटी बजी। देखा तो बचपन के एक दोस्त का नंबर मोबाइल स्क्रीन पर फ्लैश हो रहा था। मैं चौंक गया क्योंकि मेरे बंबई ओर पूना दौरे के बारे मे मैंने अपने बहौत ख़ास दोस्तों को भी नहीं बताया था फ़िर इन मित्र महोदय को इसकी जानकारी कैसे हो गई।

यद्यपि पूना मे मेरे मित्र मंडली कि कमी नहीं है, तथापि व्यस्त क्रियाकलाप और संकुचित समय के कारण मैंने किसी से भी भेंट न करने का निर्णय लिया था। खैर मित्र महोदय से कुशलक्षेम के उपरांत मन अथवा बेमन से हमने मुलाकात का एक स्थान निर्धारित किया। देर से आने वाले मेरे सॉफ्टवेर इंजिनियर मित्र अपने किसी प्रोजेक्ट मेनेजर को इस विलंब का कारण बता रहे थे । बातचीत चली ओर हम दोनों वहीँ के एक मदिरालय मे संग हो लिए , जाहिर है... मेरी जाने कि इक्षा बिल्कुल नहीं थी लेकिन किसी को नकारात्मक उत्तर नहीं दे पाने कि कमजोरी का परिणाम भुगतना पड़ा।
अबतक के अपने इस काम से मैं कुछ बहोत जादा उत्साहित नहीं था , हाँ एक पुराने दोस्त से मिलने कि खुशी जरूर थी। खैर, जैसे- जैसे मित्र महोदय के ऊपर मदिरा रानी अपना असर दिखा रही थी , वैसे वैसे धीरे धीरे शमा भी बाँधता जा रहा था. मुझे तो पता ही नहीं था कि मेरे ये श्रीमान मित्र मुझसे अलग होने के बाद इतने बड़े शायर ओर कविता प्रेमी हो जायेंगे, पेशे से कम्पूटर विशेषज्ञ ओर तबियत से शायर। अपनी व्यक्तिगत जीवन के बहोत सारे अध्यायों को खोल कर हर अध्याय के ऊपर उनकी कविता.... काबिले तारीफ़ निकली।

कोई दीवाना कहता है , कोई पागल समझता है ,
मगर धरती कि बैचनी को बस बादल समझता है ।
मैं तुझसे दूर कैसे हूँ ,तू मुझसे दूर कैसी है ,
यह तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है ।

मोहब्बत एक एहसासों कि पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था , कभी मीरा दीवानी है ।
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आँखों मे आंसू है ,
जो तू समझे तो मोती है, जो न समझे तो पानी है।

समंदर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता ,
यह आंसूं प्यार का मोती है , इसको खो नहीं सकता ।
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना ,मगर सुन ले ,
जो मेरा हो नहीं पाया , वोह तेरा हो नहीं सकता ।

भाई मैं तो बिना तारीफ़ किए नहीं रह पाया। ओर तारीफ़ सुन उनका उत्साह ओर बढ़ गया। अब तक महफिल भी अच्छी जम गई थी हमारे आस पास दो ओर लोग आकर बैठ चुके थे। तभी उनका अगला तीर चला...

अमावास की काली रातों मे दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्यासी रातों मे गम आँसू के संग होते हैं,
जब पिछवाडे के कमरे मे हम निपट अकेले सोते हैं,
जब घडियां टिक-टिक करती हैं, सब सोते हैं हम रोते हैं।
जब बार - बार दोहराने से सारी यादें चुक जातीं हैं,
जब उंच - नीच सुलझाने मे माथे नहीं नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है।
ओर उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

जब पोठे खाली होते हैं, जब हार सवाली होते हैं,
जब गजलें रास नहीं आती, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धुप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों मे देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने नहीं इक्षा मन ही मन मे घुट जाती है,
जब कॉलेज से घर जाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मना करने पर भी पारो पढने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब उस पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
ओर उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

जब कमरे मे सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण मे आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बडकी भाभी कहती है कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिनभर कुछ तो सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाले बैठक मे कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते हैं, हम जाते हैं, घबराते हैं
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मानती है, फोटो दिखलाया जाता है।
तब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
ओर उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

मस्ती, दर्द ओर एहसास का संगम एक साथ जब हो तो एक दिलचस्प कविता बन जाती है, इस बात से तो आप अवगत ही होंगे। अगर नहीं तो उन्हीके लफ्जों मे सुन लीजिये।

"भंवरा कोई फूल पर मचल बैठा तो हंगामा ,
हमारे दिल मे कोई खाब बन बैठा तो हंगामा,
अभी तक डूब के सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किस्से को हकीकत मे बदल बैठा तो हंगामा।"

काफ़ी अच्छी शाम गुजरी हमारी और मदिरालय के बाकी शायर मिजाज लोगों की। लेकीन कहते हैं हर मजे की एक कीमत चुकानी होती है, सो मुझे भी चुकानी पड़ी रात एक बजे मित्र महोदय को कंधे का सहारा देकर घर तक ले जाना पड़ा। लेकीन कुल मिलाकर मुलाक़ात अच्छी रही.

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